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शहीद-ए-आज़म भगत सिंह : युवाओं के लिए अमर प्रेरणा

28 सितंबर 1907 को पंजाब के लायलपुर ज़िले (वर्तमान में पाकिस्तान) के छोटे से गाँव बंगा में एक ऐसे बालक का जन्म हुआ, जिसने मात्र 23 वर्ष की आयु में देशभक्ति, बलिदान और विचारधारा की ऐसी अमर मिसाल कायम की कि आज भी उसका नाम लेते ही हर भारतीय का हृदय गर्व से धड़क उठता है। उस बालक का नाम था — भगत सिंह



👨‍👩‍👦 परिवार और संस्कार: देशभक्ति की जड़ें

भगत सिंह का जन्म एक जाट सिख परिवार में हुआ। उनके पिता किशन सिंह, माता विद्यावती, और दादा अर्जुन सिंह — सभी आर्य समाज के अनुयायी थे तथा समाज सुधार और स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रहे। घर में देशभक्ति का वातावरण इतना प्रबल था कि बचपन से ही भगत सिंह के मन में आज़ादी की ज्वाला जलने लगी। परिवार के कई सदस्य ग़दर पार्टी से जुड़े थे, जिसने उनके चरित्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।


🩸 बाल्यकाल की प्रेरणा: दर्द से जागृत चेतना

भगत सिंह के कोमल मन को 1919 के जलियांवाला बाग हत्याकांड और 1921 की ननकाना साहिब त्रासदी ने गहरा झकझोर दिया। बचपन में ही उन्होंने खेल-खेल में मिट्टी की जगह आज़ादी के सपने और क्रांति के हथियार अपनाए। कहा जाता है कि जब अन्य बच्चे गुड़िया-गुड़िया खेल रहे थे, तब भगत सिंह अपने साथियों के साथ लाला लाजपत राय की रैली का नाटक करते थे।


📚 शिक्षा और विचारधारा: एक गहन चिंतक का उदय

दादा अर्जुन सिंह को अंग्रेज़ी शिक्षा प्रणाली पर भरोसा नहीं था, इसलिए भगत सिंह को लाहौर के DAV विद्यालय और बाद में नेशनल कॉलेज में पढ़ने भेजा गया। यहीं उनके विचारों को दिशा मिली। वे केवल छात्र नहीं, बल्कि लेखक, वक्ता, क्रांतिकारी और गहन चिंतक बने।

भगत सिंह हिंदी, पंजाबी, उर्दू और अंग्रेज़ी में पूर्ण रूप से निपुण थे। उन्होंने मार्क्सवाद, समाजवाद और नास्तिकता जैसे विचारों का गहन अध्ययन किया और यह समझा कि सच्ची आज़ादी केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और मानसिक भी होनी चाहिए

🔥 क्रांतिकारी कदम: विचार की ताकत का प्रतीक

    • 1928: लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने के लिए अंग्रेज़ अधिकारी जे.पी. सांडर्स की हत्या।
    • 1929: दिल्ली सेंट्रल असेम्बली में बम फेंकना — न कि नुकसान पहुँचाने के लिए, बल्कि जनता तक संदेश पहुँचाने के लिए। बम के साथ एक पर्चा भी फेंका गया था, जिसमें लिखा था —

“बम और खून से ज़्यादा ताक़तवर है विचार और साहस।”

उन्होंने भागने की बजाय स्वेच्छा से गिरफ्तारी दी, ताकि अदालत के मंच से अपने विचारों को जन-जन तक पहुँचा सकें।

⚖️ बलिदान और अमरत्व: इंक़लाब की अमर गाथा

23 मार्च 1931 — यह तारीख़ भारतीय इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फाँसी दे दी गई। लेकिन वे डरे नहीं। फाँसी के फंदे पर चढ़ते समय भी वे मुस्कुरा रहे थे और “इंक़लाब ज़िंदाबाद!” का नारा लगा रहे थे।उनकी मृत्यु ने न केवल देश को झकझोरा, बल्कि युवाओं के हृदय में क्रांति की चिंगारी जला दी। 

प्रेरणा का स्रोत: आज के युवा के लिए संदेशभगत सिंह केवल एक क्रांतिकारी नहीं थे — वे एक विचारधारा, एक आदर्श, एक जीवंत प्रेरणा थे। उनका जीवन आज भी हर युवा को यह संदेश देता है:

  • 👉 अन्याय के आगे कभी झुकना नहीं।
  • 👉 अपने विचारों पर अटूट विश्वास रखना।
  • 👉 राष्ट्रहित के लिए जीना और मरना — यही सच्चा धर्म है।


वे कहते थे —

“मेरी मृत्यु के बाद भी मेरा खून बोलेगा।”

और सचमुच, आज भी उनका खून हर उस युवा के दिल में बोलता है, जो न्याय, सत्य और स्वतंत्रता के लिए खड़ा होता है।शहीद-ए-आज़म भगत सिंह — न केवल इतिहास का पात्र, बल्कि भविष्य के निर्माताओं के लिए एक अमर दीपक।

इंक़लाब ज़िंदाबाद! 

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